" नासा से एक सन्देश आया है 2015 एक लीप वर्ष तो नही है किन्तु 30 जून 2015 को एक लीप सेकंड होगी। आज की आखरी मिनट 61 सेकंड की होगी ...
" नासा से एक सन्देश आया है 2015 एक लीप वर्ष तो नही है किन्तु 30 जून 2015 को एक लीप सेकंड होगी। आज की आखरी मिनट 61 सेकंड की होगी ,मतलब आज का दिन साल के अन्य दिनों से एक सेकंड लम्बा होने वाला है। आज 30 जून 2015 को रात्रि के 11 बजकर 59 वे मिनटकी जब 59 वी सेकंड पूरी होगी तो एक सेकंड के लिए नजारा कुछ बदल जाएगा मतलब की घडी में 23 :59 :59 के बाद 00 :00 :00 बजने की जगह 23 :59 :60 बजेंगे।"
"क्या है लीप सेकंड ? आखिर क्यों बनती है लीप सेकंड ?"
यदि हम कोऑर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) की बात करे तो इसके अनुसार एक दिन में 86,400 सेकेंड्स होते है। यूटीसी एक अटॉमिक टाइम है जहा 1 सेकेंड का समय सीसियम के एटम्स में होने वाले इलेक्ट्रोमैगनेटिक ट्रांजिशन्स के अनुसार मापा जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि एक दिन में 24 घंटे होते हैं मतलब 86400 सेकंड जिसको आप एक दिन की लम्बाई भी कह सकते हो। अब यहाँ आपको यह भी बता दे कि आपने एक मीन सौर दिन ( A mean Solar Day )का नाम भी सुना ही होगा लेकिन वास्तव एक मीन सौर दिन, यानी एक दिन की औसत लंबाई , पृथ्वी को रोटेशन पर ही पर लगने वाले समय की पर निर्भर करता है।
अब यदि हम इस समय की बात करे तो सामान्यत: पृथ्वी को एक रोटेशन पूरा करने में 86,400.002 सेकेंड लगते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्यों कि धरती का रोटेशन घट रहा है। पिछली बार वर्ष 2012 में लीप सेकंड जोड़ा गया था। अब यदि हम हर दिन इस एक्स्ट्रा 0.002 सेकंड की बात करे तो औसत रूप से एक साल यानी 365 दिन में जुड़कर 0.73 सेकंड हो जाता है तो इस हिसाब से 2012 की बाद ये ये लेप सेकंड, 30 जून 2015 को न न जुड़कर होकर अब से ढेड साल या उसे थोड़ा कुछ पहले जुड़ जाना चाहिए था। लेकिन यहाँ वैज्ञानिको का तर्क यह है कि हर दिन कि लम्बाई सामान नहीं होती लम्बाई हर रोज धरती के रोटेशन में लगने वाले समय अनुसार बदलती है लेकिन दिन की औसत लम्बाई 86400.002 के आस पास ही रहती है . इसलिए 2012 की बाद आज 30 जून 2015 को इस एक्स्ट्रा समय की वहज से एक सेकंड पूरी हो गयी है जिसको आज जोड़ा जाएगा।
लीप सेकंड कब जोड़ी जानी है यह कोई निर्धारित नहीं है सन 1972 से 1999 तक हर साल वैज्ञानिको द्वारा एक लीप सेकंड जोड़ी गयी थी। लेकिन 2000 के बाद से लीप सेकंड की उपस्थिति कम हुयी है। यह सब धरती को एक रोटेशन में लगने वाले सटीक समय पर निर्भर करता है।
यहाँ एक ध्यान देने वाले बात यह भी है कि वर्ष 2012 में जब यह लीप सेकंड जोड़ा गया था तब काफी कंप्यूटर क्रैश हो गए थे।
Reference : http://www.livescience.com



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