मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ! माँ को शब्दों के माध्यम से कविताओं या कहानियों में नहीं बाँधा जा सकता। इस कविता के माध्यम से मैन...
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
माँ को शब्दों के माध्यम से कविताओं या कहानियों में नहीं बाँधा जा सकता। इस कविता के माध्यम से मैने गाँव में रहने वाली माताओं के दिनभर के कठिन परिश्रम को दर्शाने की एक छोटी कोशिश की है।
सुबह सवेरे सबसे पहले ,
हर घर में जग जाती माँ।
आँगन द्वारे झाड़ू लगाकर,
फिर मीठी चाय बनाती माँ।।
पशुओं को सानी लगाकर,
गाय दोह कर लाती माँ।
नाश्ते में पराठे बनाती,
फिर स्कूल की राह दिखाती माँ।।
घर में पौछा लगाकर ,
पशुशाला को जाती माँ।
गोबर कूड़ा साफ़ करती ,
फिर पशुओ को नहलाती माँ।।
बापस जब घर आती,
ठंडा दही छाज बनाती माँ।
नहाकर थोड़ा आराम करती,
फिर खेत पर रोटी देने जाती माँ।।
सखियों संग थोड़ा बतियाती,
दोपहर का खाना बनाती माँ।
सभी को खाना खिलाकर,
फिर खुद बाद में खाना खाती माँ।।
सारे वर्तन साफ़ करके ,
मसाला कूटने लग जाती माँ।
गेहूँ फटकती चावल फटकती,
फिर दाल में कंकड़ ढूंढ़ने लग जाती माँ।।
शाम को चाय बनाकर,
सब्जी काटने लग जाती माँ।
फूंकनी से चूल्हे की आग बढ़ाती,
फिर पानी के हाथ की रोटी बनाती माँ।।
सभी को खाना खिलाकर,
खुद बाद में खाना खाती माँ।
रात को थकी हुयी सी ,
फिर खुर्री खाट पर सो जाती माँ।।
सुबह सवेरे सबसे पहले ,
हर घर में जग जाती माँ।
आँगन द्वारे झाड़ू लगाकर,
फिर मीठी चाय बनाती माँ।।
- मनोज कुमार
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