धुँधली यादो के झरोखे से , बचपन मुझसे कहता है !
जब मैं था कितना खुश था तू , अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!
जब मैं था कितना खुश था तू , अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!
हाथ पकड़ संग पिता के चलना ,मन में विश्वाश जगाता था !
जीवन पथ पर कैसे है चलना ? यह हमको सिखलाता था !!
जीवन पथ पर कैसे है चलना ? यह हमको सिखलाता था !!
क्या भूल गया तू वो सभी बातें,जो बचपन में सिखलाई थी !
जिनको अपनाने से जीवन में खुशियां आयी थी !!
जिनको अपनाने से जीवन में खुशियां आयी थी !!
चल फिर से अपना ले मुझको, अब देरी क्यों सहता है !
धुँधली यादो के झरोखे से , बचपन मुझसे कहता है !
जब मैं था कितना खुश था तू , अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!
जब मैं था कितना खुश था तू , अब क्यों चुप चुप सा रहता है !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-09-2015) को "देवपूजन के लिए सजने लगी हैं थालियाँ" (चर्चा अंक 2731) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
धन्यवाद आदरणीय मयंक जी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : अनंत पई और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबचपन यही कहता है कि भूल न पाओगे मुझको कभी !
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