शाम के समय चाय वाले के दूकान पर मैं अपने एक मित्र एक साथ चाय पी रहा था। तभी मैं ने देखा वहां से एक भिखारी गुजरा जो की फटे हुए कपडे पहने ह...
शाम के समय चाय वाले के दूकान पर मैं अपने एक मित्र एक साथ चाय पी रहा था। तभी मैं ने देखा वहां से एक भिखारी गुजरा जो की फटे हुए कपडे पहने हुआ था , थोड़ा आगे चलकर उस भिखारी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजे से एक महिला बाहर आयी , भिखारी कुछ खाने के लिए मांगा। थोड़ी देर बाद मै ने देखा कि वह महिला उस एक प्लेट में उस व्यक्ति के लिए खाना लेकर आती है और खाने के बाद उससे एक पुराने पेण्ट शर्ट देती है। वह व्यक्ति उसका धन्यवाद करके वहा चला जाता है।
इस दृश्य के बाद मैं ने अपने दोस्त से कहा हमे भी इस महिला की तरह असहाय एवं जरूरतमंद लोगो की मदद चाहिए। यह सुनकर मेरे दोस्त ने कहा क्यों करूँ दूसरो की मदद ? मुझे क्या मिलेगा ?मै किसी का ठेका थोड़ी न लिया है। उसकी इन बातो को सुनकर मुझे बुरा लगा , समय मई ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। मैं घर पर आया और उसके सवाल का सटीक जवाब ढूंढ़ने में लगा गया। तभी नेट पर सर्च किया तो एक रोचक तथ्य सामने आया। वो यहाँ था की जब महान मुक्केबाज मोहम्मद अली से किसी ने पुछा की हमे दूसरो की मदद क्यों करनी चाहिए ? तब उन्होने कहा "दूसरो की मदद करना धरती पर आपके कमरे के किराए की तरह है , जो आपको देना ही चाहिए।
जवाब सच में रोचक है और सटीक भी। मकान में रहना है तो किराया तो होगा। हालांकि यह धरती हमारी बनाई दुनिया की तरह मिटटी , पानी ,धुप और हवा का हिसाब नहीं रखती। न ही कभी यह पूछती की आप क्या है ? और इस धरती पर क्यों है ? सच कहु तो दूसरो की मदद करना कोई पाप - पुण्य , प्रसंशा और धार्मिक उपदेश की बात नहीं है यह हमारे अपने अस्तित्व को बनाये रखने की शर्त है। हम अक्सर भूल जाते हैं कि यह और कुछ नहीं , इस धरती को अपने और दूसरो के रहने के लिए बेहतर बनाने की दिशा में बढ़ाये गए कदम हैं।
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