"वर्ष 2014 ना सिर्फ भारत बल्कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिको के लिए बेहद ही रोचक रोचक रहा। गुजरे हुए इस साल में अंतरिक्ष वैज्ञानिको ...
"वर्ष 2014 ना सिर्फ भारत बल्कि विश्व के अंतरिक्ष वैज्ञानिको के लिए बेहद ही रोचक रोचक रहा। गुजरे हुए इस साल में अंतरिक्ष वैज्ञानिको ने मंगल ग्रह के अध्ययन और इससे से जुड़े नए नए तथ्यों को जानने में सफलता हासिल की है। आईये जानते हैं ऐसे ही कुछ रोचक तथ्यों के बारे में "
(1 ) मंगल ग्रह पर पानी के मौजूद है।
2014 में नासा के वैज्ञानिको को मंगल पर पानी होने के कुछ प्रमाण मिले। हालांकि ये सही सही पता नही लग पाया है की मंगल पर खा और कितनी मात्रा में पानी है। जापान में "टोकियो इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी " के तोमोहीरो उसुई ने कहा कि मंगल के उल्कापिंडों (मीटियोराइट) की पिछली स्टडीज में तीसरे ग्रह से जुड़े जलस्रोत के संकेत मिलते रहे हैं लेकिन हमारे नए आंकड़ों के लिए पानी या बर्फ के स्रोत का अस्तित्व होना जरूरी है, उसमें भी मंगल से जुड़े नमूनों के सेट से बदलाव पता लगता है। उसुई रिसर्च पेपर के लेखक हैं और नासा " लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्यूट " के पूर्व पोस्ट डॉक्टरल फेलो हैं।
उसुई ने कहा कि इस स्टडी से पहले तक सतह पर इस जलस्रोत के अस्तित्व का या फिर मंगल की सतह से पृथ्वी पर आने वाली चट्टानों के साथ इस जलस्रोत के संपर्क का कोई प्रत्यक्ष सबूत मौजूद नहीं था। प्राप्त नमूनों में हाइड्रोजन एटम्स से बना पानी दिखाया गया है, जिसमें इसके समरूपों का एक ऐसा अनुपात है, जो लाल ग्रह के मेंटल (आवरण) और मौजूदा वायुमंडल में पाए जाने वाले जल से अलग है।
(2 ) मंगल ग्रह पर जीवन के मिले सबूत।
मंगल ग्रह पर कभी जीवन होने या भविष्य में इसकी उम्मीदों के पक्के सबूत मिले हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मार्स रोवर क्यूरियॉसिटी ने पहली बार साफ तौर पर इस ग्रह पर जैविक अणु (ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स) होने के सबूत तलाशे हैं।
साइंटिस्ट्स के मुताबिक, मंगल पर मीथेन और ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स होने इस बात की पुष्टि करता है कि वहां कभी जीवन रहा होगा या आगे इसके होने की संभावनाएं हैं। गौरतलब है कि इससे पहले क्यूरियॉसिटी मंगल पर मीथेन गैस का पता लगाने में नाकाम हो गया था। 'क्यूरियॉसिटी' पर सैंपल एनालिसिस ऐट मार्स (सैम) उपकरण समूह की जिम्मेदारी संभालने वाली टीम ने मार्स रोवर की लैंडिंग साइट 'गेल क्रेटर' में 'शीपबेड मडस्टोन के एक छिद्र वाले सैंपल में ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स देखे। ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स में मुख्य तौर पर कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एटम से बने मॉलिक्यूल्स की अलग-अलग वेराइटी होती है। बहरहाल, ऐसी रासायनिक प्रतिक्रियाओं से भी ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स बन सकते हैं जिसमें जीवित चीजों की मौजूदगी नहीं होती।
साइंटिस्ट्स के मुताबिक, मंगल पर मीथेन और ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स होने इस बात की पुष्टि करता है कि वहां कभी जीवन रहा होगा या आगे इसके होने की संभावनाएं हैं। गौरतलब है कि इससे पहले क्यूरियॉसिटी मंगल पर मीथेन गैस का पता लगाने में नाकाम हो गया था। 'क्यूरियॉसिटी' पर सैंपल एनालिसिस ऐट मार्स (सैम) उपकरण समूह की जिम्मेदारी संभालने वाली टीम ने मार्स रोवर की लैंडिंग साइट 'गेल क्रेटर' में 'शीपबेड मडस्टोन के एक छिद्र वाले सैंपल में ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स देखे। ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स में मुख्य तौर पर कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एटम से बने मॉलिक्यूल्स की अलग-अलग वेराइटी होती है। बहरहाल, ऐसी रासायनिक प्रतिक्रियाओं से भी ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल्स बन सकते हैं जिसमें जीवित चीजों की मौजूदगी नहीं होती।
लंदन नासा के क्यूरियॉसिटी रोवर को मंगल की सतह पर अकेले चक्कर काटते हुए 2 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। हाल ही में इस रोवर द्वारा खींची गई एक तस्वीर से एलियन्स के वजूद में यकीन रखने वाले बेहद उत्साहित हैं। उन्हें मंगल की सतह पर कुछ ऐसा दिखा है, जिसे वे इस बात का सबूत बता रहे हैं कि हमारे अलावा इस ब्रह्मांड में कोई और भी है। मंगल की सतह पर कुछ ऐसा दिखा है, जिसे 'एलियन की जांघ की हड्डी' बताया जा रहा है।
एलियन की तलाश और उनकी मौजूदगी को साबित करने की कोशिश में नई-नई थिअरीज पेश करने वाले लोग नासा के क्यूरियॉसिटी रोवर की खींची इस तस्वीर के आधार पर दावा कर रहे हैं कि मंगल ग्रह पर भी किसी वक्त जीवन रहा होगा। उनका दावा है कि रोवर के मैस्टकैम से 14 अगस्त को ली गई इस तस्वीर से साफ होता है कि किसी वक्त मंगल की सतह पर बड़े जानवर और शायद डायनॉसॉर तक घूमा करते थे।
'नॉर्दर्न वॉइसेज ऑनलाइन' नाम के पोर्टल पर एक अज्ञात शख्स ने लिखा है, 'इस तस्वीर में दिख रही हड्डी से साफ होता है कि मंगल पर किसी वक्त कुछ तो रहता था।' पॉप्युलर साइट 'यूएफओ ब्लॉगर' ने तो इस तस्वीर की तुलना धरती पर पाए गए सरीसृप प्रजाति के फॉसिल्स की तस्वीरों से भी की है। वे दिखाना चाहते हैं कि तस्वीर में दिख रही चीज़ किसी जानवर की हड्डियों के अवशेष हैं।
बहुत सारे लोगों को लगता है कि मंगल ग्रह पर जीवन है। पिछले साल कुछ वैज्ञानिकों ने यह थिअरी सामने रखी थी कि आज से करीब 6 करोड़ 60 लाख साल पहले धरती पर डायनॉसॉर का खात्मा करने वाला जो उल्कापिंड गिरा था, उसके टुकड़े जीवन बनाने के लिए उपयोगी तथ्वों को मंगल तक ले गए होंगे। मगर साइंटिस्ट्स का यह भी मानना है कि मंगल करोड़ों सालों से वीरान है और यहां पानी भी नहीं। ऐसे में यहां जीवन की संभावना का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह हड्डी नहीं, बल्कि पत्थर का कोई ऐसा टुकड़ा है जो हड्डी की तरह दिख रहा है। बावजूद इसके बहुत से लोग इस तस्वीर को मंगल पर जीवन होने का सबूत मानते हुए तरह-तरह की थिअरीज़ गढ़ने में जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले ही कुछ लोगों ने चांद की सतह की एक तस्वीर पर परछाई देखी थी और दावा किया था कि वह एक एलियन था। मगर बाद में नासा ने इस दावे को खारिज करते हुए इसे लोगों की कल्पना की देन करार दिया था।
मंगल की धरती पर साल 2021 में उतरने वाला नासा का रोवर वहां ऑक्सिजन बनाने की कोशिश करेगा। यह रोवर 7 वैज्ञानिक परीक्षण करेगा, जिनका उद्देश्य भविष्य में मंगल पर मानव को भेजने के लिए रास्ता तैयार करना, जीवन की मौजूदगी के सबूत ढूंढना और वापस लाने के लिए चट्टान के नमूने इकट्ठे करना होगा। मंगल पर भारी मात्रा में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड को ऑक्सिजन में बदलने वाला उपकरण भी इन्हीं परीक्षणों में से एक है।
ये ऑक्सिजन वहां मानव जीवन या वापस आने वाले अभियान में मददगार हो सकती है। इस रोवर के ज़रिए 40 किलो वज़नी उपकरण मंगल पर भेजे जाएंगे, जिनमें दो कैमरे और मौसम परीक्षण संबंधी उपकरण शामिल हैं। मार्स 2020 मिशन की घोषणा करते हुए नासा के प्रशासकीय अधिकारियों ने कहा कि हमारे लिए एक रोमांचक दिन है। एक टन के इस रोवर पर करीब 1.9 अरब डॉलर का खर्च आएगा। इसे अगस्त 2012 में मंगल पर पहुंचे क्यूरियॉसिटी रोवर की तर्ज़ पर ही बनाया जा रहा है।
हालांकि, इस पर क्यूरियॉसिटी के मुकाबले कम उपकरण भेजे जाएंगे, जो जगह बचेगी उसका इस्तेमाल मंगल की चट्टानों के नमूने इकट्ठा करने के लिए किया जाएगा। नासा को उम्मीद है कि भविष्य में मंगल से वापस आने वाली उड़ानों पर इन्हें साथ लाया जा सकेगा। नासा के मौजूदा अंतरिक्ष यान भी ऑक्सिजन का निर्माण कर सकते हैं लेकिन नए 'मॉक्सी अपकरण' इस क्षमता का मंगल ग्रह के वातावरण में पहली बार परीक्षण करेगा।
'द इनक्विजिटर' की रिपोर्ट के मुताबिक, यू ट्यूब पर डाले गए विडियो में पहली नजर में एलियन के ताबूत को देखकर उसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है, लेकिन जब उसे ध्यानपूर्वक देखा जाता है तो वह साफ नजर आता है। शोधकर्ता स्कॉट वेरिंग ने 'यूएफओ साइटिंग डेली' के हवाले से कहा, 'यह पत्थरनुमा वस्तु बिल्कुल एक ताबूत की तरह ही दिखती है।' यह लगभग एक फीट लंबी और आधा फीट ऊंची है। वेरिंग के मुताबिक, हो सकता है कि वह पत्थर का एक टुकड़ा हो, लेकिन अगर नासा का क्यूरियोसिटी रॉवर उसका निरीक्षण करे, तो चमत्कार सरीखा हो सकता है।
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