तुम अगर करोगे खिलवाड़ मुझसे तो मैं एक दिन मौत बनकर आऊँगी ! गरीब और अमीर की मुझे नही है पहचान , मैं हर आखँ में आसूं दे जाऊंगी ...
तुम अगर करोगे खिलवाड़ मुझसे तो मैं एक दिन मौत बनकर आऊँगी !
गरीब और अमीर की मुझे नही है पहचान , मैं हर आखँ में आसूं दे जाऊंगी !
जन्नत में भी तबाही और मौत के मंजर हर तरफ नजर आयंगे तुमको !
मैं रक्षक हूँ तुम्हारी , मुझे मत छेड़ो ,अगर छेड़ोगे तो भक्षक बन जाऊगी !!
दोस्तों ऊपर लिखी पंक्तियाँ प्रकृति हमसे कह रही है , प्रकृति ही हमे सब कुछ देती है , यही हमारी रक्षा करती है , किन्तु पिछले दशको में मानव ने प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है , उसका अंजाम हमे तरह तरह की आपदाओ के रूप में देखने को मिला है , बस हम ये नही समझ पाये की ये आपदा हमारी अपनी रचाई हुयी हैं और प्रकृति पर इल्ज़ाम लगा देते हैं !
हज़ारो लोग बेघर ह जाते हैं , कुछ मर जाते हैं, तो कुछ दुःख भरी जिंदगी जीने के लिए बच जाते हैं, हज़ारो बच्चो अनाथ हो जाते हैं , जब प्रकृति अपना कहर ढाती है. इसे न तो जगह की पहचान है और न ही अमीर गरीब की, न ही ये किसी से प्यार करती है और न ही नफरत, इसे बस आता है तो अपना रूप बदलना , कभी अपने अच्छे रूप से हमारी मदद करती है तो कभी विकराल रूप लेकर तबाही मचाती है चाहे वो उत्तरांचल में बाढ़ से आई तबाही का दर्दनाक मंजर हो या भारत की जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर की बाढ़ का या फिर पच्छिम उत्तर प्रदेश बिजनौर और मुरादाबाद में होने वाली भारी वारिश जो हर साल बरसात तबाही का खेल खेलकर किसानो की फसल बर्बाद करके के चली जाती है , सड़के नष्ट कर जाती है। इसी तरह ,आसाम , अरुणाचल प्रदेश , बिहार, और नार्थ ईस्ट के राज्यों में बाढ़ का भयंकर नजारा देखने को मिलता है हर साल।
प्रकृति का दूसरो भयंकर रूप है चक्रवात , मुख्यत समुद्री तट वाले इलाको में अपना जलवा दिखता है , ऐसा ही एक चक्रवात अभी हाल ही में आया जिसका नाम था हुदहुद इसकी सरसराहट से ही इतना भयावय दृश्य उभरा है कि लोग अपनी रोजी-रोटी उजड़ने, खेत खलिहान बर्बाद से लेकर अपने आशियाने के तबाह होने को लेकर चिंतित हैं। लोगों के मन में लगातार यही सवाल 'चक्रवात' कर रहा है कि पहले तो नहीं आते थे ऐसे तूफान। कभी नीलम, तो कभी पायलिन, कभी हेलन तो कभी फैलिन हुए चकवात हैं जो भयङकर तबाही मचाकर चले गए । हुदहुद भी रविवार को तटीय क्षेत्रों में कहर बरपाकर गुजरा। इस तरह के तूफानों और चक्रवातों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मौसम विज्ञानियों की मानें तो इसके लिए बदलता मौसम जिम्मेदार है। लेकिन ये मौसम इतने खतरनाक रूप से क्यों बदल रहा है। आखिर क्या वजह है इन बढ़ते तुफानो और चकर्वात की ? कौन है जिममेदार ?
इसकी एक वजह बढ़ता हुआ तापमान है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रशांत महासागर में तापमान में हो रहे बदलाव की वजह से भी इस तरह के तूफानों में तेजी आ रही है। भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक एलएस राठौर के अनुसार प्रशांत महासागर में तापमान में काफी बदलाव देखा जा रहा है। ऐसा पहले नहीं था। अमूमन जब भी प्रशांत महासागर के तापमान में बदलाव दर्ज होता था तो उससे तेज हवाएं उत्पन्न होती रही हैं। अब ये बदलाव काफी जल्दी -जल्दी देखा जा हा है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में बदलाव के कारण प्रशांत महासागर में तेज़ हवाएं पैदा हो रहीं हैं जो तूफ़ान का रूप लेकर बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ रहीं हैं। इसलिए दबाव और तेज़ हवाओं का सिलसिला बना हुआ है।
एक छोटे तूफान को चक्रवात बनने में देर नही लगती। कब ये चकर्वात का रूप धारण कर ले कुछ पता नहीं चलता ,प्रशांत महासागर में पैदा हो रहे तापमान में बदलाव को मौसम वैज्ञानिकों नें 'ला नीना' का नाम दिया है। पायलिन सहित नारी और हईयान जैसे दूसरे तूफान भी प्रशांत महासागर के तापमान में उछाल की वजह से ही उत्पन्न हुए हैं। अंडमान में नम मौसम की वजह से इन तूफान में काफी तेज़ी पैदा हुई। वैज्ञानिकों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में नम और गरम मौसम की वजह से तूफान चक्रवात का रूप धारण कर रहे हैं।
तुफानो के नाम प्रकरण की प्रथा भी अजीब है। अटलांटिक देशों के बीच समझौते से हुई तूफानों को नाम देने की शुरुआत। अगर इसके इतिहास में जाए तो हम पायगे कि चक्रवातों का नाम रखने की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के जरिए हुई थी। हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर 2004 से चक्रवाती तूफानों का नाम देना शुरू किया। इसके तहत सदस्य देशों द्वारा पहले से सुझाए गए नामों में से इन नामों को चुना जाता है। गौरतलब है कि कैटरीना, लीसा, लैरी, हिकाका, बुलबुल, फालीन, हुदहुद, जैसे अनोखे तूफानों के नाम हमेशा से लोगों के बीच उत्सुकता का विषय रहे हैं। भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक अजीत त्यागी ने कहा कि अटलांटिक क्षेत्र में हरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है। इसकी शुरुआत मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। इसकी देखरेख जिनीवा स्थित विश्व मौसम संगठन करता है। उन्होंने कहा कि हिन्द महासगर क्षेत्र में यह व्यवस्था साल 2004 में शुरू हुई, जब भारत की पहल पर आठ तटीय देशों ने इस बारे में समझौता किया। इन देशों में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं। त्यागी ने बताया कि इन आठों देशों की ओर से अपनी-अपनी पसंद के अनुसार नाम सुझाए गए हैं।
इस बार ओमान की बारी थी और 'हुदहुद' नाम ओमान की ओर से सुझाए गए नामों की सूची में से आया है। इससे पहले आए 'फालीन' तूफान का नाम थाईलैंड की ओर से सुझाया गया था। उन्होंने कहा कि इसी तरह से अगले चक्रवात का नाम पाकिस्तान की ओर से दिए गए नामों में से रखा जायेगा। त्यागी ने कहा कि भारत की ओर से सुझाए गए नामों में 'मेघ, वायु, सागर, अग्नि' आदि शामिल हैं।
अगर अभी भी हमने ग्लोबल बार्मिंग से नुकसानों को नहीं समझा , और जंगलो का कटान बंद नही किया , हर जगह कारखाने और बस्तिया बनाकर यूं ही प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते रहे तो हर साल एक नए हुदहुद जैसी तबाही का सामना करना पड़ेगा !
अगर अभी भी हमने ग्लोबल बार्मिंग से नुकसानों को नहीं समझा , और जंगलो का कटान बंद नही किया , हर जगह कारखाने और बस्तिया बनाकर यूं ही प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते रहे तो हर साल एक नए हुदहुद जैसी तबाही का सामना करना पड़ेगा !
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