दोस्तों जैसे जैसे चुनावो का समय नजदीक आता है नेता लोग सम्प्रदयिकता का खेल शुरू कर देते हैं कोई दलितो को रिझाने में लगा रहता है तो कोई मु...
दोस्तों जैसे जैसे चुनावो का समय नजदीक आता है नेता लोग सम्प्रदयिकता का खेल शुरू कर देते हैं कोई दलितो को रिझाने में लगा रहता है तो कोई मुस्लिमो को कोई हिन्दू को राम मंदिर के नाम पर भड़काता है तो कोई मुस्लिमो और जाटों को आरक्षण के नाम पर आखिर कब तक ये नेता लोग अपनी पार्टी के लिए को आपस में लड़वाते रहेंगे। कितने शर्म कि बात है अभी एक दो दिन पहले ही एक वरिस्थ पार्टी के वरिस्ट नेता के खिलाफ बिजनौर और शामली में भड़काऊ वाक्य देने के कारण रिपोर्ट दर्ज कि गयी है इस खबर को काफी अखबारो ने दिखाया है , वाक्य था अब मुज़फरनगर दंगो का बदला ले लो ये चुनाव एक अवसर है , कैसे कैसे नेता हैं यहाँ पर ? जातीय संघर्ष या साम्प्रदायिक दंगो के भड़कने का कारण भले ही कोई भी बात हो मगर राजनितिक दलों के लोग उस आग को बुझाने के बजाये इतना फैला देते है की आम आदमी अपना बहुत कुछ गवा बैठता है . हिन्दू मुस्लिम के नाम पर नेता लोग ना जाने कब तक अपनी राजनीती की रोटियाँ सेकते रहेंगे . आज भी गुजरात दंगो की फोटो देखकर रूह काँप उठती है
दोस्तों जैसे जैसे चुनावो का समय नजदीक आता है नेता लोग सम्प्रदयिकता का खेल शुरू कर देते हैं कोई दलितो को रिझाने में लगा रहता है तो कोई मुस्लिमो को कोई हिन्दू को राम मंदिर के नाम पर भड़काता है तो कोई मुस्लिमो और जाटों को आरक्षण के नाम पर आखिर कब तक ये नेता लोग अपनी पार्टी के लिए को आपस में लड़वाते रहेंगे। कितने शर्म कि बात है अभी एक दो दिन पहले ही एक वरिस्थ पार्टी के वरिस्ट नेता के खिलाफ बिजनौर और शामली में भड़काऊ वाक्य देने के कारण रिपोर्ट दर्ज कि गयी है इस खबर को काफी अखबारो ने दिखाया है , वाक्य था अब मुज़फरनगर दंगो का बदला ले लो ये चुनाव एक अवसर है , कैसे कैसे नेता हैं यहाँ पर ? जातीय संघर्ष या साम्प्रदायिक दंगो के भड़कने का कारण भले ही कोई भी बात हो मगर राजनितिक दलों के लोग उस आग को बुझाने के बजाये इतना फैला देते है की आम आदमी अपना बहुत कुछ गवा बैठता है . हिन्दू मुस्लिम के नाम पर नेता लोग ना जाने कब तक अपनी राजनीती की रोटियाँ सेकते रहेंगे . आज भी गुजरात दंगो की फोटो देखकर रूह काँप उठती है
यही हाल इस बार उतर प्रदेश के मुजफरनगर जिले का रहा . उतर प्रदेश के मुजफरनगर के दंगो की चिनगारिया बुझी भी नहीं थी , कि हमारे महान नेताओ ने उनको फैलाकर मेरठ के सरधना गाँव तक पंहुचा दिया . आज भी जगजीत जी द्वारा गायी ये पंक्तिया याद आने लगती हैं काश हमारे देश के नेता और जनता सभी इन पंक्तियों पर अमल करके देश में अमन और शान्ति बनाए रखते .
आज भारतवर्ष की समझदार जनता यही अपील करती है कि -
" मै न हिन्दू न मुसलमान , मुझे जीने दो !
" मै न हिन्दू न मुसलमान , मुझे जीने दो !
बस दोस्ती है मेरा ईमान मुझे जीने दो !!
सब के दुःख दर्द को अपना समझकर जीना !
बस है यही मेरा अरमान मुझे जीने दो !!
मै न हिन्दू न मुसलमान मुझे जीने दो !! "
बस दोस्ती है मेरा ईमान मुझे जीने दो !!
सब के दुःख दर्द को अपना समझकर जीना !
बस है यही मेरा अरमान मुझे जीने दो !!
मै न हिन्दू न मुसलमान मुझे जीने दो !! "
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