पिछली पोस्ट में बचपन के एक विशाल वृक्ष खटनी ( 1930-1995) के लिए कुछ पंक्तिया लिखी, इसके लिए भाग 2 में कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - ...
पिछली पोस्ट में बचपन के एक विशाल वृक्ष खटनी ( 1930-1995) के लिए कुछ पंक्तिया लिखी, इसके लिए भाग 2 में कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -
अनेक पक्षी आकर इस पर,
अपना घौंसला बनात्ते थे !
सभी सुबह होते उड़ जाते ,
शाम को फिर अपने घर आ जाते थे !!
इन पक्षियों का ये प्यारा घर था ,
सभी इसकी डाल पर ख़ुशी से चहचाहते थे !!
एक था वो भयानक साया ,
जो खटनी की जिंदगी में आया !
आखिर इसके मालिक ने ,
पैसो की खातिर इस पर आरा चलवाया !!
,और फिर गिर गया धरा पर,
बिखर गए इसके सभी अंग !
बेघर हो गए जाने कितने,
पक्षी इसकी यादो क संग !!
वो ले जा रहे थे इसके अंगो को,
और भरने लगे इन्हे ट्रॉली में !
हम सब बेबस होकर देख रहे थे ये दृश्य,
और आँशु गिरने लगे झोली में !!
फिर वो ले गए उसको ऐसे,
जैसे कोई मरे हुए को ले जाता है!
अब न कोई ऐसा खटनी है ,
जो दो गाव को आम खिलाता है !!
मालिक की भी थी ,
कोई आर्थिक परेशानी !!
वरना जिस खटनी को 65 सालो तक पाला,
कौन खोना चाहेगा ऐसी प्यारी निशानी !!
- मनोज कुमार
COMMENTS