अभी हाल ही में सिनेमा घरो में आयी फिल्म दंगल असली जिंदगी प्रेरित है। यह फिल्म हरयाणा के पहलवान एवम एक आदर्श पिता श्री महावीर सिंह फोग...
अभी हाल ही में सिनेमा घरो में आयी फिल्म दंगल असली जिंदगी प्रेरित है। यह फिल्म हरयाणा के पहलवान एवम एक आदर्श पिता श्री महावीर सिंह फोगाट एवम उनकी दो लडकियां गीत और बबीता के जीवन पर आधारित है। महावीर जी का सपना था कि वो पहलवानी में देश के लिए गोल्ड मैडल जीत कर लाये। लेकिन देश के लिए रेसलिंग में गोल्ड मेडल लाने के अपने अधूरे सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी बेटियों, गीता और बबिता को पहलवानी सिखाने की ठानी। और आखिर २०१० के ओलंपिक में उनकी बेटी गीता फोगाट गोल्ड मैडल जीत कर न के अधूरे सपने को पूरा किया बल्कि देश में अपने गांव जिले एवम हरयाणा का नाम भी रोशन किया।
गांव वालो एवम समाज के तानों , जली कटी सुनने की परवाह किये बिना किस तरह महावीर जी ने अपनी बेटियों को रेसलिंग की दुनिया का चैंपियन बना दिया। उनके इस संघर्ष की कहानी का नाम ही दंगल है।
उनके इस संघर्ष को फिल्म में बखूबी दर्शाया गया है। साथ ही साथ फिल्म के कुछ द्र्श्यो में यहाँ भी बताने का प्रयास किया गया है की फेडरेशन वालो का सपोर्ट खिलाड़ी को जितना मिलना चाहिए उतना मिल ही नहीं पाता इस पर फिल्म में दर्शाये गए कुछ वाक्य बिलकुल सटीक बैठे हैं -
- अरे जब थाली में रोटी न होगी तो मैडल खावेगा के ? कोई न पूछता तेरी इस पहलवानी को ? जब नौकरी मिल रही है तो कर ले।
- भाई पहलवानी में इज्जत कमाई, सोहरत कमाई बस पैसे नही कमा पाया। इसलिए पहलवानी छोड़ दी और नौकरी कर ली।
- हर पहलवान अखाड़े में यो सोच क उतरता है की वह देश के लिए मैडल लावेगा पर जब देश ही पहलवान के लिए कुछ न करे तो पहलवान बेचारा के करेगा।
- इंडिया मैडल इसलिए नही जीत पाता है क्यों की कुर्सी पर भिरष्ट अफसर बैठे हैं। दीमक पाल राखी है फेडरेशन ने , खोखला कर राखिया है स्पोर्ट को। मैडल लाने के लिए सपोर्ट कोई न मिलै लेकिन जब मैडल न मिलै तो गाली सब देते हैं। अरे मेडलिस्ट पेड़ पर नही उगते ऊनै बनाना पड़ता है मेहनत से , लगन से , हिम्मत से यहाँ के पैसे देने में माँ मर रहे है सालो की।
ये फिल्म में दर्शायी गयी इन सभी बाते एक स्पोर्टमैन की दशा को व्यक्त करती हैं। फिल्म बहुत ही प्रेरणादायक है। आमिर खान जी को शायद मिस्टर परफेक्टनिस्ट इसलये ही कहा जाता है कि वो अपने किरदार को सजीव बनाने में जी जान लगा देते हैं। साक्षी तंवर फिल्म में आमिर साहब की पत्नी के किरदार में नज़र आती हैं। उन्होंने अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। फिल्म में अनेक सीन्स भले ही कम हों, लेकिन वह जिस दृश्य में भी नज़र आयी हैं, उसमें आमिर की मौजूदगी के बावजूद भी वह अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहती हैं। फिल्म की असली जान हैं फातिमा सना शेख जोकि आमिर की बेटी गीता के किरदार में देखी जा सकती हैं। उन्होंने अपने किरदार में जान डालने के लिए कितनी मेहनत की है इसका अंदाज़ा आप फिल्म देखे बिना नहीं लगा सकते। आमिर के बाद अगर किसी और कलाकार ने फिल्म के लिए सबसे ज्यादा मेहनत की होगी तो वह फातिमा ही हैं. सान्या मल्होत्रा भी बबिता के किरदार में जान फूंकने में सफल रहती हैं।
कुल मिलाकर फिल्म बहुत ही उम्दा है।
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