जीव जन्तुओ और पक्षीयो की दुनिया भी कितनी दिलचस्प है , इतनी रोचक मनुष्यो की दुनिया कहाँ ? यहाँ तो बस वही लड़ाई - दंगा , कभी यहाँ चोरी तो ...
जीव जन्तुओ और पक्षीयो की दुनिया भी कितनी दिलचस्प है , इतनी रोचक मनुष्यो की दुनिया कहाँ ? यहाँ तो बस वही लड़ाई - दंगा , कभी यहाँ चोरी तो कभी वहा, आज यहाँ इतने मारे गए , आज वहा उस नेता ने अपने भाषण में हमको तुम्हारे खिलाफ भड़काया तो कल वो दूसरा नेता तुमको हमारे खिलाफ भड़का रहा था। फिलहाल हम कुछ देर के लिए इन सब से थोड़ा दूर जाते हैं एक विचत्र प्राणी की दुनिया में आज हम बात करेंगे चमगादड़ के बारे में जो की अपने आप में एक विचत्र प्राणी है। सबसे पहले कुछ रोचक बाते जानते है चमगादड़ के बारे में , बाद में चमगादड़ पर हो रहे कुछ शोध के नतीजों के बारे में जानेंगे।
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चमगादड़ के बारे में कुछ रोचक बाते इस तरह है -
(1) चमगाड का जंतु वैज्ञानिक नाम 'टैरोपस मीडिएस' है और ये रात्रिचर प्राणी है।
(2) चमगादड़ स्तनधारी होते हुए भी अन्य पक्षियों से तेज उड़ सकता है।
(3) चमगादड़ अंडे नहीं बल्कि बच्चे देती है।
(4) चमगादड़ के मूह और कान चूहे से काफी मिलते जुलते हैं।
(5 ) चमगादड़ फलाहारी और कीटभक्षी दोनों तरह के होते हैं।
(6 ) चमगादड़ में शरीर पर जो त्वचा होती है उसका आकर पैराशूट जैसा होता है जिसको आप उड़नझिल्ली भी कह सकते हो।
(7) चमगादड़ो की अपनी एक रडार प्रणाली होती है जिसकी मदद से ये अँधेरे में अपनी मंजिल से पहुँचते है मतलब की रात में उड़ते समय चमगादड़ अपने मुख से उच्च आवृत्ति की पराध्वनिक तरंगें (20000 हर्ट्ज आवृत्तिवाली) उत्पन्न करता है। जो सामने किसी ठोस वस्तु से परावर्तित होकर तत्काल चमगादड़ के मस्तिष्क को संदेश प्रेषित करती हैं, फलस्वरूप चमगादड़ अपनी दिशा बदल देता है। इसी कारण रात के अँधेरे में चमगादड़ किसी वृक्ष, पहाड़ी या मकान से टकराये बगैर अपने शिकार की तलाश में उड़ता चला जाता है।
(8) चमगादड़ को हम अँधेरे में वास करनेवाला समझते हैं, किंतु अनेक फलाहारी और कीटाहारी चमगादड़ संध्या के चमकीले प्रकाश में शिकार करते हैं और अन्य निशिचर जानवरों की भाँति बदली और कुहरे के मौसम में दिन में ही शिकार करने के लिये निकल पड़ते हैं।
चमगादड़ो के व्यवहार को लेकर वैज्ञानिको में बड़ी उत्सुकता देखी गयी है। चमगादड़ की विचित्रता को देखते हुए आये दिन वैज्ञानिक लोग इन पर अनेक प्रकार के शोध करते रहते है अपने एक शोध में वैज्ञानिको ने चमगादड़ों की आँखों को ढककर उन्हें ऐसे कमरे में छोड़ा गया, जिसकी छत पर रस्सियाँ लटका दी गयीं थीं। उनके लिए कीट-पतंगों और फलों का भी प्रबंध किया गया था। लेकिन चमगादड़ किसी भी रस्सी से बिना टकराये उसी तेजी के साथ उड़ते रहे जैसे वे आँखें खुली रहने पर उड़ते हैं और न ही उनके शिकार करने में कोई फर्क पड़ा। इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि चमगादड़ों को उड़ते समय आँखों से विशेष मदद नहीं मिलती बल्कि कान और मुँह ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
आज की पोस्ट में बस इतना ही।
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